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नेट मीटरिंग (Net Metering) क्या होता है ?
अगर आप अपने छत पर रूफ टॉप सोलर (Roof Top Solar) लगवाना चाह रहे या लगवाने का विचार कर रहे तो आपको नेट मीटरिंग (Net Metering) के बारे में पता होना बहुत जरूरी है।
नेट मीटरिंग (Net Metering) एक तरह का बिलिंग सिस्टम मीटर है, जो सोलर पैनल से पैदा होने वाली बिजली को मैनेज करता है। साथ ही सोलर प्लांट से जो बिजली पैदा हुई है उसका आपके घर के खपत होने के बाद कितनी बिजली ग्रिड में गई और जब सोलर पैनल बिजली नहीं पैदा कर रही होती है, “जैसे की रात में क्यूंकि सोलर पैनल केवल सूरज के रौशनी से ही बिजली पैदा करती है” उस समय आपने ग्रिड से कितना बिजली खपत किया, इन सब का हिसाब किताब नेट मीटरिंग (Net Metering) रखता है।
जब आप सोलर पैनल अपने छत पे लगवाएंगे तो उसी समय बिजली विभाग में आपको नेट मीटरिंग (Net Metering) के लिए आवेदन करना होगा और उसके बाद बिजली कंपनी के द्वारा हीं नेट मीटरिंग (Net Metering) उपलब्ध कराइ और लगाई जाएगी।
अगर हम और अच्छे से समझना चाहे तो, इस प्रक्रिया को हम निचे दिए गए क्रम वत तरीके से समझ सकते हैं।

- सोलर पैनल सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक सबसे जयादा बिजली पैदा करती है। कारन की इस समय सूरज की किरणों में रेडिएशन (Radiation) सबसे जयादा होता है और सोलर पैनल पे इसकी रौशनी भी सबसे जयादा पड़ती है। हलाकि जैसे हीं सोलर पैनल पे सूरज की किरण पड़ती है यह बिजली उत्पन्न करने लगती है मतलब सूर्योदय से सूर्यास्त तक सोलर पैनल बिजली उत्पन्न करती है।
- आपके घर में जितनेभी उपकरण है, या कहे तो आप जितनी बिजली का उपयोग करते है, उसे किलो वॉट ऑवर (Kilowatt Hour) या यूनिट (Unit) में कैलकुलेट किया जाता है। (जब आप एक किलो वॉट वाले उपकरण को 1 घंटे तक चलाते हैं तो उसे 1 किलो वॉट ऑवर या 1 यूनिट (Unit) कहते हैं। )
- घर में बिजली का उपयोग मौसम के साथ बदलता रहता है, और हमारे दिनचर्या के अनुसार भी बदलता रहता है। जैसे दिन के समय जब सोलर पैनल बिजली का उत्पादन करते रहती है उस समय हमें लाइट की जरूरत नहीं होती है, दिन में केवल पंखा, AC, कूलर, फ्रिज इन्हीं की जयादातर जरूरत पड़ती है। इसी कारन दिन में जयादातर बिजली ग्रिड में जाती है। और जब रात में सोलर पैनल बिजली पैदा नहीं करती है उस समय बिजली ग्रिड से हमारे घर में आती है।
- इस प्रक्रिया को कहते हैं घर से ग्रिड में बिजली को एक्सपोर्ट (export) करना। और जब ग्रिड से बिजली घर में ली आती है, उसे कहते हैं बिजली को इम्पोर्ट (import) करना।
नेट मीटरिंग कैसे काम करता है ?
जब सोलर पैनल से उत्पन्न होने वाली बिजली ग्रिड में एक्सपोर्ट (Export) होती है, उतनी बिजली पावर सप्लाई कंपनी (DISCOM) आपके खाते में जमा रखती है, और जब रात में या फिर जब सोलर पैनल बिजली बिजली उत्पन्न नहीं कर रही होती है उस दौरान आप जितनी बिजली का उपयोग करेंगे, उसका भुक्तान उसी जमा राशि से हो जाएगा। इसके साथ साथ सोलर पैनल से जितनी बिजली उत्पन्न हुई उसमे से जयादातर बिजली ग्रिड में export हुई है, तो ए बिजली उपभोक्ता के खाते में जमा हो जाता है।
पावर सप्लाय कंपनी ग्राहक के बिजली के एक्सपोर्ट (Export) और इम्पोर्ट (Import) का एक अलग खाता रखती है, जिसमें ग्राहक के बिजली के उत्पादन और व्यय का पूरा हिसाब रहता है।
इसे हम एक उदाहरण से समझेंगे, मान लीजिये एक बिजली उपभोक्ता एक महीने कुल 500 यूनिट का उपयोग किया, उसमेसे 300 यूनिट उसे अपने सोलर पैनल से मिल गई। मतलब उसे बिजली कंपनी को 200 यूनिट का बिल देना होगा। और अगर किसी महीने उपभोक्ता ने मात्रा 100 यूनिट बिजली का हीं उपयोग किया और उसके सोलर पैनल से 300 यूनिट बिजली उत्पन्न हुई मतलब 200 यूनिट ग्रिड को एक्सपोर्ट हुआ, तो अब उपभोक्ता के खाते में 200 यूनिट जमा हो जाएगा, जिसे ओ कभी भी उपयोग में कर सकता है।
नेट मीटरिंग (Net Metering) लगवाने के फायदे
अब तो आप समझ हीं गे होंगे की नेट मीटरिंग (Net Metering) क्या होता है और ए काम कैसे करता है। अब बात करते है इसके फायदे के बारे में।
- नेट मीटरिंग (Net Metering) का सबसे बड़ा फायदा है की आप बिजली का उपयोग कभी भी कर सकते है चाहे दिन हो रात, चाहे सोलर पैनल बिजली उत्पन्न कर रही हो या नहीं कर रही हो ( क्यूंकि जब आकाश में बादल होता है और सूरज की किरण पैनल पे नहीं पर रही होती है तो उस समय सोलर पैनल (Solar Panel) बिजली उत्पन्न नहीं कर सकती है।
- दूसरा सबसे बड़ा फायदा है की उसे अपने घर में जो सोलर पैनल से बिजली उत्पन्न हुई है जिसे उसने ग्रिड में एक्सपोर्ट (Export) किया है उसकी पूरी कीमत उसे मिल जाएगी।
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